Raksha Bandhan का त्योहार भाइयों और बहनों के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। रक्षाबंधन का त्यौहार हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षा बंधन का यह त्योहार भाई-बहन के प्यार और कर्तव्य के रिश्ते को समर्पित है। यह हिंदुओं का एक विशेष त्योहार है।
रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। भाई अपनी बहन को हमेशा उसका समर्थन करने और उसकी रक्षा करने के लिए कहता है। यह परंपरा हमारे भारत में काफी लोकप्रिय है। दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार भाई दूज है।
रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को और भी मधुर और गहरा बनाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के हाथ में राखी बांधती हैं और भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई बहन की रक्षा करने की कसम खाता है। भाई अपनी क्षमता के अनुसार अपनी बहन को उपहार देते हैं।
बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, और कहती हैं, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी और तुम मेरी रक्षा करोगे। यह जरूरी नहीं है कि वे अपने ही असली भाई हों, वे किसी और को राखी बांध, बहन के रिश्ते को निभाते हैं।
Raksha Bandhan की तारीख कब है? 2023 | ||
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Date | 30 August,2023 Wednesday | |
Date | इंद्राणी ने इंद्र के दाहिने हाथ में रक्षासूत्र बांधा था, इस पवित्र धागे के कारण इंद्र को जीत मिली। जिस दिन यह रक्षासूत्र बांधा गया उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी। |
Raksha Bandhan से जुड़े स्टोरी - महाराणा संग्राम सिंह
चित्तौड़ के महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद, जब सुल्तान बहादुर शाह ने चारों ओर से चित्तौड़ के गढ़ को घेर लिया, तब खुद को बेहद असहाय पाकर रानी कर्मावती ने शहनशाह हुमायूँ को राखी भेजी और अपने राज्य की रक्षा के लिए मौन निमंत्रण दिया।
हुमायूँ, समय पर नहीं पहुंचने के कारण, वे चित्तौड़ को पराजित होने से नहीं बचा पाए और कर्मावती को जौहर की ज्वाला में मरने से नहीं बचा पाए, लेकिन बाद में उनके राज्य पर बहादुर शाह और मेवाड़ के असली उत्तराधिकारी (उदय सिंह) को हरा दिया। और हुमायूँ ने राखी के कीमत चुकाई।
रक्षाबंधन Festival की पौराणिक कथा। राजा इन्द्र पर
हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार राजा इन्द्र पर दानवों ने हमला कर दिया जिसमें राजा इन्द्र की शक्ति कमजोर पङने लगी। तब इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी जिनका शशिकला नाम था, उन्होने ईश्वर के समक्ष तपस्या तथा प्रार्थना की। इन्द्राणी की तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने शशिकला को एक रक्षा सूत्र दिया ।
इन्द्राणी ने उसे इन्द्र के दाहिने हाँथ में बाँध दिया, इस पवित्र रक्षा सूत्र की वजह से इन्द्र को विजय प्राप्त हुआ। जिस दिन ये रक्षासूत्र बांधा गया था उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी। संभवतः इसीलिए रक्षाबंधन Festival आज-तक सावन मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है।
रक्षाबंधन त्योहार Story राजा बली
एक बार राजा बली अपने यज्ञ तप की शक्ति से स्वर्ग पर आक्रमण करके सभी देवताओं को परास्त कर देते हैं, तो इन्द्र सहित सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और राजा बली से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। तब विष्णु जी वामन अवतार में ब्राह्मण के रूप में राजा बली से भिक्षा मांगने जाते हैं और तीन पग भूमि दान में माँगते हैं।
राजा बली उन्हे भूमि देने का वचन देते हैं, तभी वामन रूपी विष्णु जी तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बली को रसातल में भेज देते हैं। रसातल में राजा बली अपनी भक्ती से भगवान विष्णु को प्रसन्न करके उनसे वचन ले लेते हैं कि भगवान विष्णु दिन-रात उनके सामने रहेगें।
श्री विष्णु के वापस विष्णुलोक न आने पर परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी सलाह देते हैं कि, आप राजा बली को भाई बनाकर उसको रक्षासूत्र बाँधिये। नारद जी की सलाह अनुसार माता लक्ष्मी बली को रक्षासूत्र बाँधती हैं और उपहार में भगवान विष्णु को माँगकर अपने साथ ले जाती हैं।
ये संयोग ही है कि इस दिन भी सावन मास की पूर्णीमा थी। आज भी सभी धार्मिक अनुष्ठानों में यजमान को ब्राह्मण एक मंत्र पढकर रक्षासूत्र बाँधते हैं जिसका अर्थ होता है कि- जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बली को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं आपको बाँध रहा हुँ, आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।
आपसी सौहार्द तथा भाई-चारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरूष सदस्य परस्पर भाई-चारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। राजस्थान में ननंद अपनी भाभी को एक विशेष प्रकार की राखी बाँधती है जिसे लुम्बी कहते हैं।
कई जगह बहने भी आपस में राखी बाँध कर एक दूसरे को सुरक्षा को भरोसा देती हैं। इस दिन घर में नाना प्रकार के पकवान और मिठाई खाने का भी विशेष महत्व होता।
महाराष्ट्र में ये त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उङिसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानो पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।
रक्षाबंधन के इस पावन पर्व का महत्तव इसलिए और अधिक हो जाता है क्योकि इसी दिन अमरनाथ की यात्रा सम्पूर्ण होती है, जिसकी शुरुवात गुरु पूर्णिमा से होती है।
रविन्द्रनाथ टैगोर ने रक्षाबंधन के त्योहार को स्वतंत्रता के घागे में पिरोया।
उनका कहना था कि, राखी केवल भाई-बहन का त्योहार नही है अपितु ये इंसामियत का पर्व है, भाई-चारे का पर्व है। जहाँ जातिय और धार्मिक भेद-भाव भूलकर हर कोई एक दूसरे की रक्षा कामना हेतु वचन देता है और रक्षा सुत्र में बँध जाता है। जहाँ भारत माता के पुत्र आपसी भेद-भाव भूलकर भारत माता की स्वतंत्रता और उसके उत्थान के लिए मिलजुल कर प्रयास करते।
रक्षा के नजरिये से देखें तो, राखी का ये त्योहार देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा तथा लोगों के हितों की रक्षा के लिए बाँधा जाने वाला महापर्व है। जिसे धार्मिक भावना से बढकर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहने सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वंय की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं।
हमारे देश में राष्ट्रपति भवन में तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में भी रक्षाबंधन का आयोजन बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रधानमंत्री को तो अक्सर कई लोगों ने देखा होगा बच्चों से राखी बँधवाते। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, रक्षा की कामना लिये भाई-चारे और सदभावना का ये धार्मिक पर्व सामाजिक रंग के धागे से बंधा हुआ है। जहाँ लोग जातिय और धार्मिक बंधन भूलकर एक रक्षासूत्र में बंध जाते हैं।
पवित्र धागा, जनेऊ जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
- माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी - हम अपने माता-पिता के प्रति ऋणी हैं.
- समाज के प्रति जिम्मेदारी - हम समाज के प्रति ऋणी हैं और
- ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी - हम गुरु के ऋणी हैं।
यज्ञोपवीत (पवित्र धागा, जनेऊ) यह हमें इन तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
तीन बार लिपटे धागे का महत्व है- मुझे अपने शरीर को शुद्ध रखना है, मेरा मन शुद्ध है और मेरी वाणी शुद्ध है। और जब कोई धागा आपके चारों ओर लटका रहता है, तो आपको हर दिन याद दिलाते हैं कि मेरे पास ये तीन जिम्मेदारियां हैं।
इसलिए, इस दिन, यह पवित्र धागा (जनेऊ) एक संकल्प के साथ पहना जाता है. की मेरे पास ताकत है, हर कार्य जो मैं करता हूं वह कुशल और सम्मानजनक है। कर्म करने के लिए भी योग्यता आवश्यक है। और जब शरीर शुद्ध होता है, वाणी शुद्ध होती है और चेतना जागृत होती है, तब काम पूरा होता है।
एक व्यक्ति को यह काम करने के लिए कौशल और क्षमताओं की आवश्यकता होती है चाहे वे आध्यात्मिक हों या सांसारिक कार्य हों और आपको इस कौशल और क्षमता को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार होना होगा।